किसी शायर की भाषा और प्रसंग सूरदास के वात्सल्य वर्णन की सादगी को याद दिलाते हैं?
सवाल: किसी शायर की भाषा और प्रसंग सूरदास के वात्सल्य वर्णन की सादगी को याद दिलाते हैं?
सूरदास के वात्सल्य वर्णन की सादगी और सहजता हिंदी साहित्य में अद्वितीय है। उनकी भाषा सरल और बोली जाने वाली भाषा के करीब है, जो उनके पाठकों को तुरंत आकर्षित करती है।
यहां कुछ शायर हैं जिनकी भाषा और प्रसंग सूरदास के वात्सल्य वर्णन की सादगी की याद दिलाते हैं:
1. रसखान:
रसखान अपनी सरल भाषा और भावपूर्ण कविताओं के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविताओं में मातृत्व और बाल-प्रेम का सुंदर चित्रण मिलता है।
उदाहरण:
"कान्ह जू के बाल मुखवाँ की चंद्रिका सोभा, रसखान जू के मन को हरि ने छीन लिया।"
2. मीराबाई:
मीराबाई की कविताओं में कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम और भक्ति का भाव है। उनके पदों में मातृ-भाव और बाल-प्रेम का भी सुंदर वर्णन मिलता है।
उदाहरण:
"मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई। जाके सिर पर मोर मुकुट, माथे पे तिलक सोहै।"
3. रहीम:
रहीम अपनी नीति-कथाओं और दोहों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाओं में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें बाल-प्रेम और मातृत्व भी शामिल हैं।
उदाहरण:
"जो रहीम गति सुख चाहै, सो करे परहित सार। पर पीड़ा सम नहिं अधमा, पाप कमावै नार।"
इन शायरों की भाषा और प्रसंग सूरदास के वात्सल्य वर्णन की सादगी की याद दिलाते हैं। उनकी कविताओं में मातृत्व, बाल-प्रेम और भक्ति का भाव सरल और सहज भाषा में व्यक्त किया गया है, जो पाठकों के मन को तुरंत छू जाता है.
अन्य शायर:
- कुँवर नारायण
- अज्ञेय
- महादेवी वर्मा
- रामधारी सिंह दिनकर
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सूरदास के वात्सल्य वर्णन की सादगी उनकी भाषा और प्रसंग तक ही सीमित नहीं है। उनकी कविताओं में भावों की गहराई और भक्ति का भाव भी है, जो उन्हें हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि बनाता है.
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