बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही? Bina phere ghoda bigadata hai aur bina lade sipaahee?

सवाल: बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही?

उपरोक्त लिखित कथन "लहाना सिंह" के द्वारा लिखा गया है। इस पूरी पंक्ति में कवि यह कहना चाहता है, कि जिस तरह घोड़े को अगर घुमाया फिराया नहीं जाता है, उसका चलना फिरना बंद कर दिया जाता है, तो वह एक तरह से अडियल हो जाता है, और जब भी उसे दोबारा चलाया जाए तो वह आसानी से चल नहीं पाता है। और इसी तरह सिपाही कि जंग लड़ने की बारी आती है, तो उनका खून खौल उठता है, उनका जोश चरम पर होता है, पर अगर सिपाही को जंग के मैदान में ही नहीं उतारा जाए तो उसकी ताकत कम हो जाती है, और उसके स्वास्थ्य पर गलत असर पड़ता है। इसी तरह कवि यह कहना चाहता है, कि मनुष्य को कर्म करना चाहिए जिस तरह घोड़ा बिना चले फिरे जीवित नहीं रह सकता। जिस तरह सिपाही बिना लड़े जीवित नहीं रह सकता, उसी तरह मनुष्य भी बिना कर्म के जीवित नहीं रह सकता है।

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