बिहारी का प्रिय अलंकार क्या है? यमक रूपक विभावना अनुप्रास? bihari ka priya alankar kya hai yamak rupak vibhavana anupras


सवाल: बिहारी का प्रिय अलंकार क्या है? यमक रूपक विभावना अनुप्रास?

बिहारी का प्रिय अलंकार उत्प्रेक्षा है। उत्प्रेक्षा का अर्थ है "मानना" या "कल्पना करना"। इसमें किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से की जाती है, लेकिन यह तुलना प्रत्यक्ष नहीं होती है। बल्कि, कवि पाठक से यह कल्पना करने के लिए कहता है कि वह दो वस्तुओं या व्यक्तियों में समानता देख रहा है।

बिहारी ने अपनी रचनाओं में उत्प्रेक्षा अलंकार का बहुत ही सुंदर और प्रभावी ढंग से प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए, निम्नलिखित दोहे में बिहारी ने उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग किया है:

दो नयन बिंदु, चाँदनी मुख, कटि कंगूरू, गात चंदन। मोर मुकुट कटि काछिनि, माधो बनमाल धरयो।

इस दोहे में, बिहारी ने कृष्ण की सुंदरता का वर्णन करते हुए उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग किया है। उन्होंने कृष्ण के दो नयनों को बिंदुओं, मुख को चाँदनी, कटि को कंगूरू, गात को चंदन, मोर मुकुट को कटि काछिनि और माधो बनमाल को धरना बताया है। इन सभी तुलनाओं में, बिहारी ने पाठक से यह कल्पना करने के लिए कहा है कि वह दो वस्तुओं या व्यक्तियों में समानता देख रहा है।

उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग बिहारी के दोहों में बहुत ही प्रभावी ढंग से किया गया है। इस अलंकार के प्रयोग से बिहारी के दोहों में एक विशेष प्रकार का सौंदर्य और चमत्कार उत्पन्न हुआ है।

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