मध्यकालीन आर्यभाषाओं में पालि व प्राकृत भाषा के विकास और महत्त्व की उदाहरण सहित व्याख्या करें।
सवाल: मध्यकालीन आर्यभाषाओं में पालि व प्राकृत भाषा के विकास और महत्त्व की उदाहरण सहित व्याख्या करें।
मध्यकालीन आर्यभाषाओं में पालि व प्राकृत भाषा के विकास और महत्त्व की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है:
पालि भाषा
पालि भाषा, प्राचीन भारतीय आर्यभाषाओं में से एक है, जो बौद्ध धर्म की भाषा के रूप में प्रसिद्ध है। यह भाषा प्राचीन भारत की मागध भाषा से विकसित हुई है, जो मध्यदेश की प्रमुख भाषा थी।
पालि भाषा का विकास मुख्यतः बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के कारण हुआ। बुद्ध के उपदेशों को सुरक्षित रखने और उनका प्रचार करने के लिए पालि भाषा का प्रयोग किया गया। बौद्ध धर्म के प्रमुख ग्रंथ, जैसे- बुद्धचरित, अंगुत्तर निकाय, धम्मपद, सुत्तनिपात, आदि पालि भाषा में रचित हैं।
पालि भाषा का व्याकरण सरल और सुव्यवस्थित है। इसमें तीन लिंग, तीन वचन, छह कारक, आठ लकार और आठ गण होते हैं। पालि भाषा में स्वराघात का प्रयोग होता है।
पालि भाषा का महत्त्व निम्नलिखित है:
- यह बौद्ध धर्म की भाषा है, और बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में इसका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
- यह एक प्राचीन भारतीय भाषा है, और प्राचीन भारतीय साहित्य के अध्ययन के लिए इसका अध्ययन आवश्यक है।
- यह एक सुव्यवस्थित भाषा है, और इसका व्याकरण सरल और आसान है।
प्राकृत भाषा
प्राकृत भाषा, प्राचीन भारतीय आर्यभाषाओं का एक समूह है, जो संस्कृत से विकसित हुई हैं। प्राकृत भाषाओं को आम भाषाओं के रूप में जाना जाता था, जिन्हें आम लोग बोलते थे।
प्राकृत भाषाओं का विकास मुख्यतः लोकभाषाओं के प्रभाव के कारण हुआ। संस्कृत भाषा एक आदर्श भाषा थी, और इसे आम लोग बोलने में असमर्थ थे। इसलिए, आम लोगों ने अपनी बोलचाल की भाषाओं को विकसित किया, जिन्हें प्राकृत भाषाओं के नाम से जाना जाता है।
प्राकृत भाषाओं में अनेक उपभाषाएँ हैं, जिनमें से प्रमुख हैं:
- अपभ्रंश
- प्राकृत
- मागधी
- अर्धमागधी
- शौरसेनी
- पैशाची
- गांधार
प्राकृत भाषाओं का महत्त्व निम्नलिखित है:
- यह संस्कृत भाषा का एक विकसित रूप है, और संस्कृत भाषा के अध्ययन के लिए इसका अध्ययन आवश्यक है।
- यह प्राचीन भारतीय साहित्य के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण साधन है।
- यह मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषाओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।
उदाहरण के लिए, पालि भाषा में रचित बौद्ध ग्रंथ, जैसे- बुद्धचरित, अंगुत्तर निकाय, धम्मपद, सुत्तनिपात, आदि भारतीय साहित्य के अमूल्य खजाने हैं। इन ग्रंथों में बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और उपदेशों का सुंदर वर्णन किया गया है।
प्राकृत भाषा में रचित नाटक, जैसे- शाकुंतलम, मालविकाग्निमित्रम्, मालतीमाधवम्, आदि भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि हैं। इन नाटकों में भारतीय संस्कृति और जीवन का सुंदर वर्णन किया गया है।
मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषाओं, जैसे- हिंदी, उर्दू, पंजाबी, मराठी, आदि का विकास प्राकृत भाषाओं के प्रभाव के कारण हुआ है।
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