मोहन राकेश के जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए? Mohan rakesh ke jivan par sankshipt prakash daliye
सवाल: मोहन राकेश के जीवन पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए?
मोहन राकेश (8 जनवरी 1925 - 3 दिसंबर 1972) नई कहानी आन्दोलन के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे। वे हिन्दी नाटक और उपन्यास के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदानकर्ता थे।
मोहन राकेश का जन्म अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता कर्मचंद वकील थे। मोहन राकेश ने लाहौर के ओरियंटल कॉलेज से शास्त्री की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी और अंग्रेजी में एम.ए. किया।
मोहन राकेश ने अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत लघु कहानियों से की। उनकी पहली कहानी "सड़क" 1948 में प्रकाशित हुई। इसके बाद उन्होंने कई कहानियाँ लिखीं, जिनमें "आखरी चिट्ठी", "आषाढ़ का एक दिन", "आधे अधूरे", "लहरों के राजहंस", "पैर तले की ज़मीन" आदि प्रमुख हैं।
मोहन राकेश ने नाटक लेखन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका पहला नाटक "आषाढ़ का एक दिन" 1958 में प्रकाशित हुआ। इस नाटक ने उन्हें एक महत्वपूर्ण नाटककार के रूप में स्थापित किया। इसके बाद उन्होंने "लहरों के राजहंस", "आधे अधूरे", "पैर तले की ज़मीन" आदि नाटक लिखे।
मोहन राकेश ने उपन्यास लेखन में भी हाथ आजमाया। उनका पहला उपन्यास "आषाढ़ का एक दिन" 1958 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास ने उन्हें एक महत्वपूर्ण उपन्यासकार के रूप में स्थापित किया। इसके बाद उन्होंने "लहरों के राजहंस", "आधे अधूरे" आदि उपन्यास लिखे।
मोहन राकेश को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, तथा पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
मोहन राकेश का निधन 3 दिसंबर 1972 को दिल्ली में हुआ। वे 47 वर्ष के थे।
मोहन राकेश के साहित्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- आधुनिकता: मोहन राकेश ने अपने साहित्य में आधुनिकता के सिद्धांतों का प्रयोग किया। उन्होंने अपनी कहानियों, नाटकों, और उपन्यासों में यथार्थवाद, मनोविश्लेषण, और प्रतीकवाद की तकनीकों का प्रयोग किया।
- सामाजिक चेतना: मोहन राकेश के साहित्य में सामाजिक चेतना का स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। उन्होंने अपने साहित्य में सामाजिक समस्याओं, जैसे कि जातिवाद, वर्गवाद, और शोषण, पर विचार किया।
- भाषा का प्रयोग: मोहन राकेश ने अपने साहित्य में भाषा का प्रयोग बड़ी कुशलता से किया है। उन्होंने आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए, अपने साहित्य को अधिक सरल और प्रभावशाली बनाया है।
मोहन राकेश हिंदी साहित्य के एक प्रमुख स्तंभ थे। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। उनके साहित्य का अध्ययन और अनुशीलन आज भी प्रासंगिक है।
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