नर हो न निराश करो मन को कविता की व्याख्या? Nar ho na nirash karo man ko kavita ki vyakhya
सवाल: नर हो न निराश करो मन को कविता की व्याख्या?
मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित "नर हो न निराश करो मन को" कविता में, कवि मनुष्य को निराशा न करने के लिए प्रेरित करते हैं। कवि कहते हैं कि जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन इन कठिनाइयों से घबराकर या निराश होकर मनुष्य को अपने लक्ष्य से नहीं हटना चाहिए। कवि कहते हैं कि मनुष्य में अनंत शक्तियाँ हैं और वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
कविता की पहली पंक्ति में, कवि मनुष्य को "नर" कहकर संबोधित करते हैं। इस शब्द से कवि का आशय है कि मनुष्य को अपने मानवीय गुणों को याद रखना चाहिए और साहस, दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास से आगे बढ़ना चाहिए।
दूसरी पंक्ति में, कवि कहते हैं कि मनुष्य को "निराश" नहीं होना चाहिए। निराश होना मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। निराश होने पर मनुष्य अपने लक्ष्य से भटक जाता है और सफलता प्राप्त करने से चूक जाता है।
तीसरी पंक्ति में, कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन को "न निराश" करना चाहिए। मनुष्य का मन उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। मनुष्य अपने मन से ही अपने लक्ष्य को निर्धारित करता है और उसे प्राप्त करने के लिए प्रयास करता है। इसलिए, मनुष्य को अपने मन को मजबूत और आशावादी रखना चाहिए।
चौथी पंक्ति में, कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने जीवन में आने वाली "कठिनाइयों" से नहीं घबराना चाहिए। कठिनाइयाँ जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा हैं। इन कठिनाइयों का सामना करने से ही मनुष्य अपने आप को मजबूत बनाता है और जीवन में सफलता प्राप्त करता है।
पांचवीं पंक्ति में, कवि कहते हैं कि मनुष्य में अनंत "शक्तियाँ" हैं। मनुष्य में बुद्धि, विवेक, कल्पनाशीलता और दृढ़ संकल्प जैसी शक्तियाँ हैं। इन शक्तियों का उपयोग करके मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
छठी पंक्ति में, कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए "पथ" पर चलना चाहिए। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए मनुष्य को कड़ी मेहनत, धैर्य और लगन से काम करना चाहिए।
सातवीं पंक्ति में, कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए "सही मार्ग" का चुनाव करना चाहिए। सही मार्ग का चुनाव करने से मनुष्य को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में आसानी होगी।
आठवीं पंक्ति में, कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए "साहस" चाहिए। साहस के बिना मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता।
नौवीं पंक्ति में, कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए "दृढ़ संकल्प" चाहिए। दृढ़ संकल्प के बिना मनुष्य अपने लक्ष्य से भटक सकता है।
दसवीं पंक्ति में, कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए "आत्मविश्वास" चाहिए। आत्मविश्वास के बिना मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ होगा।
ग्यारहवीं पंक्ति में, कवि कहते हैं कि मनुष्य को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए "अमरत्व" प्राप्त होगा। अमरता का अर्थ है अनंत जीवन या अनंत सफलता।
इस प्रकार, "नर हो न निराश करो मन को" कविता में, कवि मनुष्य को अपने जीवन में कठिनाइयों से घबराकर या निराश होकर नहीं बल्कि साहस, दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं।
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