आचार्य विश्वनाथ के अनुसार काव्य की परिभाषा लिखिए? Aacharya vishwanath ke anushar kavy ki paribhasa likhiye
सवाल: आचार्य विश्वनाथ के अनुसार काव्य की परिभाषा लिखिए?
आचार्य विश्वनाथ ने काव्य की परिभाषा निम्नलिखित रूप में दी है:
वाक्यं रसात्मकं काव्यम्
अर्थात्, रसयुक्त वाक्य ही काव्य है।
आचार्य विश्वनाथ के अनुसार, काव्य का मूल तत्व रस है। रस ही काव्य को काव्य बनाता है। रस, विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से उत्पन्न होता है। जब काव्य में इन भावों का समावेश होता है, तो वह काव्य रसात्मक हो जाता है।
आचार्य विश्वनाथ की यह परिभाषा काव्य की मौलिकता और उसकी सौंदर्यात्मकता पर बल देती है। यह परिभाषा काव्य के क्षेत्र को संकुचित नहीं करती है।
आचार्य विश्वनाथ की परिभाषा के अनुसार, काव्य के निम्नलिखित लक्षण हैं:
- वाक्यात्मकता: काव्य एक वाक्यात्मक रचना है।
- रसात्मकता: काव्य में रस का समावेश होना आवश्यक है।
- भावात्मकता: काव्य में भावों का चित्रण होना आवश्यक है।
- सौंदर्यात्मकता: काव्य में सौंदर्य का समावेश होना आवश्यक है।
आचार्य विश्वनाथ की परिभाषा काव्यशास्त्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह परिभाषा काव्य के मूल तत्व रस पर प्रकाश डालती है और काव्य की मौलिकता और सौंदर्यात्मकता को रेखांकित करती है।
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