आदिकालीन साहित्य का विस्तृत मूल्यांकन करें। Aadikalin sahitya ka vistrit mulyankan karen


सवाल: आदिकालीन साहित्य का विस्तृत मूल्यांकन करें।

आदिकालीन साहित्य का काल 750 से 1375 ईस्वी तक माना जाता है। यह काल हिंदी साहित्य का प्रारंभिक काल है। इस काल में हिंदी भाषा का विकास अपभ्रंश से हुआ था। आदिकालीन साहित्य मुख्य रूप से दो प्रकार का है:

  • धर्मिक साहित्य: इस प्रकार के साहित्य में मुख्य रूप से धार्मिक विषयों का वर्णन किया गया है। इसमें रामायण, महाभारत, पुराण, गीता, उपनिषद, तंत्र, योग, दर्शन आदि ग्रंथों का समावेश है।
  • रासो साहित्य: इस प्रकार के साहित्य में मुख्य रूप से राजाओं और वीरों की कथाओं का वर्णन किया गया है। इसमें पृथ्वीराज रासो, चंदबरदाई रचित, आल्हाखंड, बाँकीदास रचित, बीसलदेव रासो, जसनाथ रचित आदि ग्रंथों का समावेश है।

आदिकालीन साहित्य के प्रमुख मूल्यांकन निम्नलिखित हैं:

  • भाषा: आदिकालीन साहित्य की भाषा अपभ्रंश से हिंदी की ओर विकसित होती हुई भाषा है। इसमें संस्कृत के शब्दों का प्रयोग अधिक है।
  • शैली: आदिकालीन साहित्य की शैली सरल, सुबोध और भावपूर्ण है। इसमें काव्यात्मकता का समावेश है।
  • विषयवस्तु: आदिकालीन साहित्य की विषयवस्तु मुख्य रूप से धार्मिक और ऐतिहासिक है। इसमें धर्म, दर्शन, वीरता, प्रेम आदि विषयों का वर्णन किया गया है।

आदिकालीन साहित्य का हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। इस काल में रचित ग्रंथों ने हिंदी भाषा और साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की। आदिकालीन साहित्य के प्रमुख लेखकों में चंदबरदाई, बाँकीदास, जसनाथ, विद्यापति, सिद्ध, नाथ आदि का नाम उल्लेखनीय है।

आदिकालीन साहित्य के मूल्यांकन के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया जा सकता है:

  • भाषा की दृष्टि से: आदिकालीन साहित्य की भाषा अपभ्रंश से हिंदी की ओर विकसित होती हुई भाषा है। इसमें संस्कृत के शब्दों का प्रयोग अधिक है। इस काल में रचित ग्रंथों में काव्यात्मकता का समावेश है।
  • शैली की दृष्टि से: आदिकालीन साहित्य की शैली सरल, सुबोध और भावपूर्ण है। इसमें काव्यात्मकता का समावेश है।
  • विषयवस्तु की दृष्टि से: आदिकालीन साहित्य की विषयवस्तु मुख्य रूप से धार्मिक और ऐतिहासिक है। इसमें धर्म, दर्शन, वीरता, प्रेम आदि विषयों का वर्णन किया गया है।

आदिकालीन साहित्य के मूल्यांकन के लिए कुछ प्रमुख आलोचकों के विचार निम्नलिखित हैं:

  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल: आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदिकालीन साहित्य को "वीरगाथा काल" नाम दिया है। उन्होंने आदिकालीन साहित्य के मूल्यांकन में कहा है कि "इस काल का साहित्य प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक विषयों का वर्णन किया गया है।"
  • आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी: आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने आदिकालीन साहित्य को "प्रतिभापूर्ण और कल्पनाशील" बताया है। उन्होंने कहा है कि "इस काल के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में देशभक्ति, वीरता और प्रेम जैसे भावों को व्यक्त किया है।"
  • आचार्य नंददुलारे वाजपेयी: आचार्य नंददुलारे वाजपेयी ने आदिकालीन साहित्य को "हिंदी साहित्य का आधार" बताया है। उन्होंने कहा है कि "इस काल के साहित्यकारों ने हिंदी भाषा और साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की है।"

कुल मिलाकर, आदिकालीन साहित्य हिंदी साहित्य के विकास में एक महत्वपूर्ण चरण है। इस काल में रचित ग्रंथों ने हिंदी भाषा और साहित्य को एक नई दिशा प्रदान की है।

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