बाबर की ममता में लेखक क्या कहना चाहता है? Babar ki mamta me lekhak kya kahna chahta hai


सवाल: बाबर की ममता में लेखक क्या कहना चाहता है?

 देवेंद्रनाथ शर्मा की रचित बाबर की ममता नाटक में लेखक बाबर के व्यक्तित्व की एक अनदेखी पक्ष को उजागर करता है। बाबर एक योद्धा और विजेता था, लेकिन उसके अंदर एक पिता और एक पुत्र के रूप में भी ममता और करुणा थी।

नाटक में बाबर अपने पुत्र हुमायूँ की बीमारी से बहुत चिंतित है। वह उसके लिए हर संभव कोशिश करता है, लेकिन हुमायूँ की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा है। बाबर अपने पुत्र के लिए प्रार्थना करता है और उसे ठीक करने के लिए भगवान से विनती करता है।

बाबर हुमायूँ के लिए एक पिता का कर्तव्य निभाता है। वह उसे प्यार करता है और उसकी देखभाल करता है। वह चाहता है कि उसका पुत्र स्वस्थ और सुखी रहे।

नाटक के अंत में हुमायूँ ठीक हो जाता है। बाबर को बहुत खुशी होती है। वह अपने पुत्र को गले लगाता है और उसे आशीर्वाद देता है।

बाबर की ममता नाटक से लेखक यह संदेश देना चाहता है कि हर व्यक्ति में ममता और करुणा होती है। चाहे वह कोई योद्धा हो या विजेता। ममता और करुणा ही मानवता की सबसे बड़ी शक्ति है।

नाटक के माध्यम से लेखक बाबर के व्यक्तित्व की एक नई छवि प्रस्तुत करता है। वह बाबर को एक योद्धा से ज्यादा एक पिता और एक पुत्र के रूप में पेश करता है। बाबर के व्यक्तित्व की यह अनदेखी पक्ष नाटक को एक अलग आयाम देता है।

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