रामविलास शर्मा की आलोचना पद्धति पर एक लेख लिखिए? Ramvilas sharma ki alochana paddhati par ek lekh likhiye
सवाल: रामविलास शर्मा की आलोचना पद्धति पर एक लेख लिखिए?
रामविलास शर्मा की आलोचना पद्धति: एक विहंगावलोकन
डॉ. रामविलास शर्मा (1912-1988) हिंदी साहित्य के एक स्तंभ हैं जिन्होंने अपनी आलोचना पद्धति से साहित्यिक मूल्यांकन के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाए।
उनकी आलोचना पद्धति की कुछ प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:
1. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण: शर्मा जी ने साहित्य को सामाजिक परिवेश और राजनीतिक परिस्थितियों से जोड़कर देखा। उनका मानना था कि साहित्य समाज का प्रतिबिंब है और सामाजिक बदलावों को दर्शाता है।
2. द्वंद्वात्मक विश्लेषण: शर्मा जी ने द्वंद्वात्मक पद्धति का उपयोग करते हुए साहित्यिक कृतियों का विश्लेषण किया। उन्होंने साहित्य में विरोधी तत्वों, जैसे कि प्रगति और परंपरा, आदर्श और यथार्थ, व्यक्ति और समाज, आदि का अध्ययन किया।
3. मूल्यवादी दृष्टिकोण: शर्मा जी ने साहित्यिक कृतियों का मूल्यांकन केवल कलात्मक गुणों के आधार पर नहीं, बल्कि उनके सामाजिक और नैतिक मूल्यों के आधार पर भी किया। उनका मानना था कि साहित्य में प्रगतिशील और मानववादी मूल्यों को दर्शाना चाहिए।
4. तुलनात्मक अध्ययन: शर्मा जी ने विभिन्न भाषाओं और साहित्यिक परंपराओं के बीच तुलनात्मक अध्ययन किया। उन्होंने हिंदी साहित्य को विश्व साहित्य के संदर्भ में रखकर देखा।
5. लोक संस्कृति का महत्व: शर्मा जी ने लोक संस्कृति और मौखिक परंपराओं को साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उन्होंने लोकगीतों, लोककथाओं और लोकनाटकों का अध्ययन किया और उनका हिंदी साहित्य पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन किया।
6. भाषा और शैली का विश्लेषण: शर्मा जी ने भाषा और शैली को साहित्यिक कृतियों के महत्वपूर्ण तत्वों के रूप में माना। उन्होंने भाषा के प्रयोग और शैलीगत विशेषताओं का अध्ययन करके लेखक के विचारों और भावनाओं को समझने का प्रयास किया।
शर्मा जी की आलोचना पद्धति के कुछ महत्वपूर्ण प्रभाव इस प्रकार हैं:
- हिंदी साहित्य में समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण की स्थापना: शर्मा जी ने हिंदी साहित्य में समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण की स्थापना की। उन्होंने साहित्यिक कृतियों का मूल्यांकन सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों के संदर्भ में करने पर बल दिया।
- द्वंद्वात्मक विश्लेषण का विकास: शर्मा जी ने द्वंद्वात्मक विश्लेषण की पद्धति विकसित की, जिसका उपयोग करके साहित्यिक कृतियों में विरोधी तत्वों का अध्ययन किया जा सकता है।
- मूल्यवादी आलोचना का उदय: शर्मा जी ने मूल्यवादी आलोचना का उदय किया। उन्होंने साहित्यिक कृतियों का मूल्यांकन केवल कलात्मक गुणों के आधार पर नहीं, बल्कि उनके सामाजिक और नैतिक मूल्यों के आधार पर भी करने पर बल दिया।
- तुलनात्मक अध्ययन को बढ़ावा: शर्मा जी ने तुलनात्मक अध्ययन को बढ़ावा दिया। उन्होंने हिंदी साहित्य को विश्व साहित्य के संदर्भ में रखकर देखा।
- लोक संस्कृति का महत्व: शर्मा जी ने लोक संस्कृति और मौखिक परंपराओं को साहित्य का महत्वपूर्ण हिस्सा माना। उन्होंने लोकगीतों, लोककथाओं और लोकनाटकों का अध्ययन किया और उनका हिंदी साहित्य पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन किया।
- भाषा और शैली के अध्ययन पर ध्यान: शर्मा जी ने भाषा और शैली के अध्ययन पर ध्यान दिया। उन्होंने भाषा के प्रयोग और शैलीगत विशेषताओं का अध्ययन करके लेखक के विचारों और भावनाओं को समझने का प्रयास किया।
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