रस किसे कहते हैं रस के अंगों के नाम लिखिए? Ras kise kahte hai ras ke ango ke naam likhiye
Sunday, January 14, 2024
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सवाल: रस किसे कहते हैं रस के अंगों के नाम लिखिए?
रस का शाब्दिक अर्थ है आनंद। काव्यशास्त्र में, रस का अर्थ है काव्य में उत्पन्न होने वाला आनंद। रस काव्य की आत्मा है। रस के बिना काव्य का कोई अर्थ नहीं है।
रस के अंगों को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है:
- स्थायी भाव: रस का आधार स्थायी भाव होता है। स्थायी भाव मन की मूलभूत प्रवृत्तियाँ हैं। आठ स्थायी भाव हैं:
- रति: प्रेम
- उत्साह: उत्साह
- वीर: वीरता
- करुणा: करुणा
- रौद्र: क्रोध
- भयानक: भय
- वीभत्स: घृणा
- शांत: शांति
- उद्दीपनक: स्थायी भाव को उद्दीप्त करने वाले कारण को उद्दीपक कहते हैं। उद्दीपक बाह्य या आंतरिक हो सकते हैं। बाह्य उद्दीपक जैसे, सुंदर दृश्य, संगीत, आदि। आंतरिक उद्दीपक जैसे, प्रेम, स्मृति, आदि।
- विभाव: उद्दीपक के कारण मन में उत्पन्न होने वाले भाव को विभाव कहते हैं। विभाव स्थायी भाव को विकसित करने में सहायक होते हैं।
- अनुभाव: स्थायी भाव के पूर्णतः विकसित होने पर मन में उत्पन्न होने वाले भाव को अनुभाव कहते हैं। अनुभाव स्थायी भाव को व्यक्त करने में सहायक होते हैं।
- संचारी भाव: अनुभाव के साथ साथ मन में उत्पन्न होने वाले अन्य भावों को संचारी भाव कहते हैं। संचारी भाव अनुभाव को और अधिक प्रभावशाली बनाने में सहायक होते हैं।
रस के अंगों का संबंध एक दूसरे से अटूट होता है। स्थायी भाव के बिना उद्दीपक का कोई अर्थ नहीं होता है। उद्दीपक के बिना विभाव का कोई अर्थ नहीं होता है। विभाव के बिना अनुभाव का कोई अर्थ नहीं होता है। अनुभाव के बिना संचारी भाव का कोई अर्थ नहीं होता है। और संचारी भाव के बिना रस का कोई अर्थ नहीं होता है।
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